क्या है Cloud Seeding? क्यों भारत में यह इतनी सफल हैं?

क्या है Cloud Seeding? क्यों भारत में यह इतनी सफल हैं?

अभी कुछ समय पहले हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वे दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए Cloud Seeding की योजना बनायें।

अपने पत्र में, दुष्यंत चौटाला ने Cloud Seeding पर एक IIT कानपुर के एक प्रोजेक्ट के बारे में उल्लेख किया है जो “केंद्र सरकार से तकनीकी सहायता और विमान की अनुपलब्धता” के कारण रुकी हुई थी।

Cloud Seeding क्या है?

Cloud Seeding (कृत्रिम वर्षा) को बनाने के लिए Weather Modification Technique का एक प्रकार है। यह केवल तभी काम करता है जब वातावरण में पहले से पर्याप्त बादल मौजूद हों। इसके साथ बारिश तब होती है जब हवा में नमी उस स्तर तक पहुँच जाती है जहाँ पर इसे रखा जाना संभव नहीं होता है।

Cloud Seeding
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यहाँ पर Cloud Seeding का उद्देश्य उस प्रक्रिया में तेजी लाना है, जिसके चारों ओर Chemical process Nuclei उपलब्ध कराए जा सकते हैं। बारिश के ये जो भी बीज हैं वो सभी Silver, Potassium, Dry Ice (Solid Carbon di Oxide) या Liquid Propane के iodide हो सकते हैं। बीज को विमान द्वारा या जमीन से छिड़काव करके वितरित किया जाता है।

Cloud Seeding की कैसे शुरुआत हुई है?

कृत्रिम वर्षा भारत के लिए कोई नई बात नहीं है और इससे पहले Cloud Seeding के ज़रिये कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में सूखे को दूर करने का प्रयास किया गया था।

Cloud Seeding
Cloud Seeding

Cloud Seeding के इसी तरह के प्रयोगों को पहले ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, स्पेन और फ्रांस में आजमाया गया था। संयुक्त अरब अमीरात में, Cloud Seeding Technique से अबू धाबी में 52 तूफान बनाये थे।

पिछले साल तक, IMD के द्वारा Cloud Seeding की लगभग 30 सफल घटनाएँ की गयी थीं। इसके अलावा रूस और अन्य ठंडे देशों में इस तरह की Cloud Seeding की घटनायें नियमित हैं जहाँ पर हवाई अड्डों पर कोहरे को फैलाने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जाता है।

क्या है IIT Kanpur की रिसर्च?

IIT Kanpur के वैज्ञानिकों ने दिल्ली में स्मॉग को साफ करने के लिए कृत्रिम वर्षा के जरिए कृत्रिम बारिश का एक प्रोजेक्ट तैयार किया था। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने इस परियोजना को मंजूरी भी दी थी।

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परियोजना ने National Remote Sensing Agency (An ISRO affiliated Body) से बादलों में उड़ान भरने और Silver Iodide को इंजेक्ट करने के लिए एक विमान की माँग की, जिससे बर्फ के क्रिस्टल बनेंगे और इससे बादल भी घनीभूत होंगे और बारिश में संघनित होकर धूल मिट्टी से निपटेंगे।

2018 में IIT Kanpur को परियोजना के लिए DGCA के साथ रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय से सभी मंजूरी मिल गई थी, लेकिन विमान उपलब्ध नहीं होने के कारण यह परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी।

क्या राज्य सरकारों ने इस तकनीक को अपनाया?

मई 2019 में, कर्नाटक मंत्रिमंडल ने दो वर्षों की अवधि के लिए कृत्रिम वर्षा के लिए 91 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी थी। इसमें नमी से भरे बादलों पर बारिश को प्रेरित करने के लिए दो विमान भी Silver Iodide के छिड़काव के लिए शामिल थे। इसके जून अंत तक शुरू होने और तीन महीने तक जारी रहने की उम्मीद थी।

Hindustan Aeronautics Lim. (HAL) ने भी IIT Kanpur के साथ भागीदारी की हुई है और परियोजना के लिए लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने के लिए Dornier Aircraft और उनके पायलट प्रदान करने के लिए सहमत भी हुए हैं।

Cloud Seeding तकनीक कितनी सफल है?

पुणे स्थित Indian Institute of Tropical Metrology पिछले कई वर्षों से Cloud Seeding पर प्रयोग कर रहा है। ये प्रयोग नागपुर, सोलापुर, हैदराबाद, अहमदाबाद, जोधपुर और हाल ही में वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में किए गए हैं।

बारिश को प्रेरित करने में इन प्रयोगों की सफलता दर स्थानीय वायुमंडलीय परिस्थितियों, हवा में नमी की मात्रा और क्लाउड की कुछ विशेषताओं के आधार पर लगभग 60 से 70 प्रतिशत है।

IIT Kanpur के अलावा, कुछ निजी कम्पनियाँ कृत्रिम वर्षा की सेवाएँ भी प्रदान करती हैं। ये वो कंपनियां हैं जो पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र और कर्नाटक में कृत्रिम वर्षा के काम में लगी हुई हैं और इन्हें मिश्रित सफलता भी मिली है।

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